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इ॒दं वा॑मा॒स्ये॑ ह॒विः प्रि॒यमि॑न्द्राबृहस्पती। उ॒क्थं मद॑श्च शस्यते ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idaṁ vām āsye haviḥ priyam indrābṛhaspatī | uktham madaś ca śasyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम्। वा॒म्। आ॒स्ये॑। ह॒विः। प्रि॒यम्। इ॒न्द्रा॒बृ॒ह॒स्प॒ती॒ इति॑। उ॒क्थम्। मदः॑। च॒। श॒स्य॒ते॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:49» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः ऋचावाले उनचासवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और प्रजा की कैसे वृद्धि हो, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राबृहस्पती) बिजुली और सूर्य्य के सदृश मन्त्री और राजा ! (वाम्) आप दोनों के (आस्ये) सुख में (इदम्) यह (प्रियम्) सुन्दर (उक्थम्) प्रशंसा करने योग्य (मदः) आनन्द (च) और (हविः) खाने योग्य वस्तु (शस्यते) स्तुति किया जाता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो राजा आदि मनुष्य उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न को खाते हैं तो प्रकाशयुक्त अधिक अवस्थावाले और बलवान् होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजमनुष्याः कथं वर्धेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्राबृहस्पती ! वामास्य इदं प्रियमुक्थं मदश्च हविः शस्यते ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) (वाम्) (आस्ये) मुखे (हविः) अत्तुमर्हं संस्कृतमन्नम् (प्रियम्) कमनीयम् (इन्द्राबृहस्पती) विद्युत्सूर्य्याविव प्रधानराजानौ (उक्थम्) प्रशंसनीयम् (मदः) आनन्दः (च) (शस्यते) स्तूयते ॥१॥
भावार्थभाषाः - यदि राजादयो मनुष्याः सुसंस्कृतान्नं भुञ्जते तर्हि प्रकाशवन्तो दीर्घायुषो बलिष्ठाश्च जायन्ते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा व प्रजेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जे राजे इत्यादी उत्तम प्रकारे संस्कारित केलेले अन्न खातात तेव्हा ते प्रकाशयुक्त (तेजस्वी) दीर्घायुषी व बलवान होतात. ॥ १ ॥